बस्तर का सिनेमा मुर्गा लड़ाई उत्सव;इस त्यौहार को आदिवासी पूर्वजों से मनाते आ रहें हैं....
बुल्लिपारा, ग्राम पंचायत कोडेनार 3, जिला बस्तर, छत्तीसगढ़ में वनवासी आदिवासियों का प्रसिद्ध मुर्गा लड़ाई का उत्सव आयोजन किया जाता हैं|यह उनका आनंद उठाने का उत्सव हैं,इसमें महिलाएँ पुरुष बच्चें बुजुर्ग सभी आते हैं |इस उत्सव का कोई शुरुआत नहीं हैं,कहीं अंत नहीं है,क्योंकि इस त्यौहार को साल के हर महीने में अच्छा समय देखकर करतें हैं|सबसे पहले इस त्यौहार को मनाने के लिए निर्णय लेते हैं,कि कब और कहाँ करना है उसके बाद उस जगह पर एक गोला 40 से 50 मीटर व्यास का बनाते हैं|मुर्गा लड़ाई उत्सव के दिन उस जगह पर धूप(गर्मी) कम होते ही जमा हो जाते हैं,महिलाएँ देशी मादक पदार्थ जैसे लंदा,कल,गोर्गा,फास अर्थात् क्रमशः लंदा,मंद सल्फी,सुरम लाते हैं|पुरुष लोग दो-दो मुर्गा का जोड़ी बराबर वजन या ऊंचाई के अनुसार करते हैं,उसके बाद एक-एक जोड़ी को उनके एक-एक पैर में छोटा चाकू बांध देते हैं और गोले के अंदर ले जाकर आपस में लड़ाते हैं,पुरुष लोग दो पक्ष में विभक्त हो जाते है,पहला पक्ष एक मुर्गा की ओर,दूसरा पक्ष दूसरे मुर्गा ओर होता हैं दोनों पक्ष आपस में अपने हिसाब से पैसा रखते हैं,जो मुर्गा जीतता है उस पक्ष के लोग पैसा ले जाते हैं,परन्तु ये पैसा किसी न किसी रूप में उन्हीं हारे हुए लोगों के पास पहुँच जाता है| जैसे- जीते हुए लोग उन्हीं पैसों से लंदा मंद आदि उनके हिसाब से पीते हैं,इस प्रकार उनकी पत्नियों बहनों के द्वारा ये पैसा पुनः हारे हुए लोगों के हाथ में पहुँच जाता हैं|इस प्रकार दोनों पक्ष खुश हो जाता हैं|इसके बाद रातभर चाँदनी रात में पुरुष महिलाऐं बच्चें सब दो पक्ष में विभक्त होकर पंक्तिबद्ध में नानो वेया आदि गाना से नाचते-गाते हैं|इस प्रकार बस्तर के आदिवासी उत्सव दिवस मनातें हैं|इसलिए मुर्गा लड़ाई उत्सव को बस्तर के आदिवासियों का सिनेमा कहना उचित होगा|जय जौहार,जय बस्तर!