मै समझ रहा हूँ तुम्हारा होना...कविता
जिला-रीवा (मध्यप्रदेश) से प्रीतमलाल प्रजापति एक कविता सुना रहें है:
मै समझ रहा हूँ तुम्हारा होना-
तुम्हारी इच्छाओं से कितनी छिपी रहती है-
हमारी ही प्रेम की इच्छा हमारे ही प्रेम से दूर-
हम किसे समझाते हैं किसे प्रेम करते है-
तुम्हारे सांथ अच्छा लगता है कमाकर प्याज खरीदना-
धूप में छत पर बैठ मटर छीलना मौसम की बात करना-
कभी-कभी दुवेचा बंधु को सुनना-
ऐसा क्या है इस जीवन में जो संभव हो तुम्हारे बिना-
प्रेम ही एक दिन अंत कर देता है प्रेम का इतने सलीके से...