कब तक बोझ यूं ढोना है, कोरोना को रोना है...कोरोना पर कविता-
छत्तीसगढ़ राजनांदगांव से वीरेंद्र गन्धर्व कोरोना समस्या पर एक कविता सुना रहे हैं:
गाँव गली और शहर में शक-
पुरुषों के बीच शक-
महिलाओं के बीच शक-
ऐसा चलेगा कब तलक-
कब तक बोझ यूं ढोना है-
कोरोना को रोना है-
सर्दी खांसी ज्वर नहीं है-
सांस लेना दूभर नहीं है-
फिर भी दूरी निहित है-
हाथ मिलाकर गले लगाकर-
नहीं दिखाना प्रीत है...