गिनती नही आती, मेरी माँ को यारो, मैं एक रोटी मांगता हूँ, वह हमेशा दो ही लेकर आती है...कविता
ग्राम-कूकदूर, तहसील-पंडरिया, जिला-कबीरधाम (छत्तीसगढ़)से मिथिलेश माणिकपुरी एक कविता सुना रहे है:
गिनती नही आती, मेरी माँ को यारो-
मैं एक रोटी मांगता हूँ, वह हमेशा दो ही लेकर आती है-
जन्नत का हर लम्हा दीदार किया था, गोद में उठाकर जब माँ ने प्यार किया था-
सब कह रहे थे आज माँ का दिन है, वो कौन सा दिन जो माँ के बिन है-
सन्नाटा छा गया बटवारे के हिस्से में, जब माँ ने पूछा मै हूँ किसके हिस्से में-
इस बार मुक्मल तलाश ही लूँगा, पता नही गम छुपाकर हमारे माँ बाप कहा रखते थे...