हमें नहीं चाहिए शिक्षा का ऐसा अधिकार...श्याम बहादुर नम्र का कविता पाठ
हमें नहीं चाहिए शिक्षा का ऐसा अधिकार
जो गैर ज़रूरी बातें जबरन सिखाए
हमारी ज़रूरतों के अनुसार सीखने पर पाबंदी लगाए
हमें नहीं चाहिए ऐसा स्कूल
जहाँ जाकर हम जीवन के हुनर जाएँ भूल
हमें नहीं चाहिए ऐसी किताब
जिसमे न मिलें हमारे सवालों के जवाब
हम क्यों पढ़े वह गणित
जो न कर सके ज़िंदगी का सही सही हिसाब
हम क्यों पढ़े पर्यावरण के ऐसे पाठ
जो आँगन के सूखते वृक्ष का इलाज़ न बताए
गांव में फैले मलेरिया उल्टी दस्त न रोक पाएं
हम क्यों पढ़े ऐसा विज्ञान
जो शान्त न कर सके हमारी जिज्ञासा
जीवन में जो समझ में न आए
हम क्यों पढ़े वह भाषा
हम क्यों पढ़े वह इतिहास
जो धार्मिक उन्माद बढाए
नफ़रत का बीज बोकर
आपसी भाईचारा घटाए
हम क्यों पढ़े ऐसी पढाई
जो कब कैसे काम आएगी न जाए बताई
परीक्षा के बाद न रहे याद
हुनर से काटकर जवानी कर दे बरबाद
हमें चाहिए शिक्षा का अधिकार
हमें चाहिए सीखने के अवसर
हमें चाहिए किताबें
हमें चाहिए स्कूल
लेकिन जो हमें चाहिए हमसे पूछकर दीजिए
उनसे पूछकर नहीं जो हमें कच्चा माल समझते हैं
स्कूल की मशीन में ठोंक पीटकर
वयवस्था के पुर्जे में बदलते हैं
Posted on: Jan 04, 2012. Tags: Shyam Namra
एक बच्ची स्कूल नहीं जाती, बकरी चराती है...श्याम बहादुर नम्र का कविता पाठ
एक बच्ची स्कूल नहीं जाती, बकरी चराती है
वह लकडियां बटोरकर घर लाती है
फिर मां के साथ भात पकाती है
एक बच्ची किताब का बोझ लादे स्कूल जाती है
शाम को थकी मांदी घर आती है
वह स्कूल से मिला होमवर्क मां-बाप से करवाती है
बोझ किताब का हो या लकडी का
बच्चियां ढोती हैं
लेकिन लकडी से चूल्हा जलेगा
तब पेट भरेगा
लकडी लाने वाली बच्ची यह जानती है
वह लकडी की उपयोगिता पहचानती है
किताब की बातें कब किस काम आती हैं
स्कूल जाने वाली बच्ची
बिना समझे रट जाती है
लकडी बटोरना
बकरी चराना
और मां के साथ भात पकाना
जो सचमुच घरेलू काम हैं
होमवर्क नहीं कहे जाते
लेकिन स्कूलों से मिले पाठों के अभ्यास
भले ही घरेलू काम न हों
होमवर्क कहलाते हैं
कब होगा
जब किताबें
सचमुच
होमवर्क से जुडेंगी
और लकडी बटोरने वाली बच्चियां भी
ऐसी किताबें पढेंगी
श्याम बहादुर नम्र