जो अक्सर अंधेरे के साये मे रहती है...कविता-
कानपुर से के एम भाई अंतर्राष्टीय महिला दिवस के उपलक्ष में एक कविता सुना रहे है :
जो अक्सर अंधेरे की साये में रहती है-
मैंने देखा है ऊँ आँखों को-
जो कभी आंसुओ से भीग जाती है-
तो जो कभी पहर सी ठहर सी जाती है-
जो सदियों से एक पलक भी नहीं झपकी-
जो कभी एकांत में सिसक जाती है...