सहकार रेडिओ: बाल चौपाल : मै तो बिल्ली हूँ / कहानी-रिनचिन/ अनुवाद- सुशील जोशी/चित्र- जितेन्द्र ठाकुर/आ
*बाल चौपाल : मै तो बिल्ली हूँ / कहानी-रिनचिन/ अनुवाद- सुशील जोशी/चित्र- जितेन्द्र ठाकुर/आवाज़- सुनीता*
श्रोताओं, सहकार रेडियो के कार्यक्रम “बाल चौपाल” में आज आप सुनेंगे कहानी “मै तो बिल्ली हूँ”| इसे पुस्तिका के रूप में प्रकाशित किया है एकलव्य प्रकाशन ने| लेखक हैं रिनचिन और अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद किया है सुशील जोशी ने| चित्र बनाए हैं जितेन्द्र ठाकुर ने| आवाज़ है जयपुर राजस्थान से सुनीता जी की| ध्वनि सम्पादन किया है शिल्पी ने|
https://youtu.be/6×2L9vqzGfQ *वेबसाइट पर सुनें
https://www.sahkarradio.com/.../bal-chaupal-mai-to-billi…/
Posted on: Mar 06, 2022. Tags: SAHAKAR RADIO
सहकार रेडियो: बाल चौपाल : शाही बिस्तर पर सोने की सज़ा...
श्रोताओं, बाल चौपाल में आज सुनिए कहानी “शाही बिस्तर पर सोने की सज़ा”| कहानी ये सन्देश देती है की बराबरी और न्याय हासिल करने के लिए सचेत और निडर होना कितना ज़रूरी है| कहानी का संकलन किया है अंशुमाला गुप्ता ने| इसे प्रकाशित किया है भारत ज्ञान-विज्ञान समिति ने और आवाज़ है जयपुर राजस्थान से साथी सुनीता की|
https://www.youtube.com/watch?v=EgXS5-8gvTM
Posted on: Nov 24, 2021. Tags: SAHAKAR RADIO
सहकार रेडियो : बाल चौपाल (बतख जब डर जाती है)
श्रोताओं, सहकार रेडियो के कार्यक्रम “बाल चौपाल” में आज आप सुनेंगे पुस्तक “बतख जब डर जाती है” की ऑडियो रिकॉर्डिंग| इसे लिखा है श्यामला एस ने| हिंदी अनुवाद किया है सचिन कामरा ने और सुन्दर चित्र बनाए हैं अंकुर मित्रा ने| आवाज़ है जयपुर, राजस्थान से साथी सुनीता की| इस कार्यक्रम को 08050068000 पर मिस्ड कॉल कर सुन सकते हैं |
Posted on: Oct 04, 2021. Tags: BAL CHAUPAL SAHAKAR RADIO
सहकार रेडियो : असगर वज़ाहत की कहानी-
सहकार रेडियो पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रम “कहानियों का कारवां” में आज आप सुनेंगे असगर वज़ाहत की कहानी “लड़कियां”| ये कहानी हमने ब्लॉग यूनाइटिंग वर्किंग क्लास से साभार ली है। आवाज़ है मुंबई से रंगकर्मी साथी विनोद कुमार की|
Posted on: Sep 29, 2021. Tags: SAHAKAR RADIO
सहकार रेडियो : विचार यात्रा....
श्रोताओं, सहकार रेडियो पर विचारों के सफर में आज 23 सितंबर को चिली के क्रांतिकारी कवि पाब्लो नेरुदा के स्मृति दिवस पर सुनिये उनके विचार। जिनके माध्यम से वो एक कवि या लेखक को उसके दायित्व की याद दिलाते हैं।