क्यों बेदर्द हो रहा है जमाना, क्यों कठोर हो रहे हैं लोग...
क्यों बेदर्द हो रहा है जमाना
क्यों कठोर हो रहें है लोग
कहाँ गुम हो रही है इंसानियत
कहाँ गायब हो रही है मानवता
क्यों आज किसी को, आज मतलब नहीं है
अपने सिवा किसी और से
क्यों गुजर रही है दुनिया आज इस दौर से
ऐसा तो नहीं था परिवेश अपना
आखिर में कहाँ भागे जा रहे हैं हम
और क्या हासिल करने की चाह में भाग रहें मंजिल मंजिल
मंजिल सिर्फ और सिर्फ मंजिल,कैसी होती है मंजिल
कैसी होती है सफलता
क्या किसी को ठोकर मारकर ही मंजिल कहलाता है
क्या किसी को धक्का मारकर आगे बढ़ जाना ही सफलता के दायरे में आता है
क्या किसी को रुलाकर अपने लिए खुशियाँ जुटाना ही इंसानियत कहलाता है
क्या किसी को दुख दर्द के गम को छोड़ देना और हंसना हीं मानवता कहलाता है
क्यों हम आज प्यार प्रेम सहानुभूति ,इंसानियत ,मानवता मदद जैसी चीजों से दूर जा रहें हैं हम
आखिर क्यों हम भूल रहें हैं ,इससे क्यों हम बचना चाहते हैं
क्यों क्यों उसका जबाब भी हमें ही ढूढना होगा
और शुरुआत भी अपने आप से ही करना होगा
शायद तब हम इन्सान कहलाने लायक हो सकेंगे
वी के वर्मा, गिरिडीह ,झारखण्ड