गरीब का कहाँ पुछारी...कहानी-
गर्मी का दिन था| एक गरीब किसान रामू बिना जूते पहने और बिना पानी साथ रखे जरुरी काम के लिये घर से निकल पड़ा| रास्ता बड़ा दूर था| पेड़ का छाव तक नही था| समय के साथ धूप तेज हुई और धरती गर्म हो गई| रामू दौड़ाने लगा और थक गया| रास्ते में एक बबूल का पेड़ मिला| जिसके नीचे वह आराम किया और फिर से चलने लगा|शाम तक रामू पहुंच गया| वहां पहुचने पर उसके मामा बहुत खुश हुए| लेकिन मामी खुश नही हुई| उसके बाद उसकी मामी ने महमानों के लिये बिना मन का खाना बनाया| जो रामू को अच्छा नहीं लगा और वह दूसरे दिन चला गया| ये सब रामू के मामा को अच्छा नहीं लगा| उसने अपनी पत्नी को कहा तुमने ठीक नहीं किया| घर पहुंचकर रामू ने अपनी माँ को उस व्योहार के बारे में बताया| माँ बोली इसीलिए मै जाने से मना कर रही थी| इससे सीख मिलती है हमारे व्योहार से ही हमारी पहचान होती है| इसलिये सोच समझ कर काम करना चाहिए|